CLASS 12TH BIOLOGY MOST IMPORTANT QUESTIONS FOR BOARD EXAM

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CHAPTER - 1

                         SEXUAL REPRODUCTION IN FLOWERING PLANT


1- भ्रूणकोष तथा भ्रूणपोष में अन्तर |

Ans - भ्रूणकोष (Uterus): भ्रूणकोष एक महिला के गर्भाशय को कहा जाता है, जो गर्भनाल में स्थित        होता है। यह एक महत्त्वपूर्ण अंग है जो गर्भावस्था के दौरान बच्चे को सहेजने, पोषण करने, और उसकी प्रगति को निगरानी करने के लिए जिम्मेदार होता है।

  • भ्रूणपोष (Embryo): भ्रूणपोष एक गर्भस्थ शिशु को कहा जाता है, जो गर्भावस्था के पहले चरण में होता है। जब एक अंडाणु और शुक्राणु मिलते हैं और एक स्त्री के गर्भाशय में स्थापित होते हैं, तो उस विकासमान भ्रूण को भ्रूणपोष कहा जाता है। इस अवस्था में, भ्रूणपोष कई ऊतकों और अंगों का निर्माण करता है जो बच्चे के विकास में सहायक होते हैं।

संक्षेप में, भ्रूणकोष गर्भाशय को और भ्रूणपोष गर्भस्थ शिशु को संदर्भित करता है, लेकिन ये दोनों ही अलग-अलग प्रकार के भौतिक अंग हैं जो गर्भावस्था में एक-दूसरे के सहायक होते हैं।

2- भ्रूणपोष क्या है २ इसके विभिन्न प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन ?

Ans-  भ्रूणपोष (Embryogenesis):

  • प्रारंभिक भ्रूणपोष (Early Embryogenesis):
    इस चरण में, जब अंडाणु और शुक्राणु मिलते हैं, एक एकल सेल का भ्रूण बनता है जिसे एक जननी ऊतक (zygote) कहा जाता है। यह सेल फिर अंगों और ऊतकों का निर्माण करती है।

  • अग्रगामी भ्रूणपोष (Gastrulation):
    इस चरण में, भ्रूण अग्रगामी ऊतकों में विभाजित होता है और तीन प्राथमिक ऊतकों (इकटोडर्म, मेसोडर्म, और एक्टोडर्म) का निर्माण होता है, जो शिशु के अंगों का निर्माण करते हैं।

  • नर्तक भ्रूणपोष (Neurulation):
    इस चरण में, न्यूरल ट्यूब बनता है, जो शिशु के सर्वोत्तम तंतु सिस्टम का निर्माण करता है और स्नायु प्रणाली की शुरुआत होती है।

  • ऊतकों का विकास (Organogenesis):
    इस चरण में, भ्रूण के ऊतक विभिन्न अंगों और अंगसंबंधी सिस्टमों का निर्माण करते हैं, जैसे कि हृदय, कंधे, मस्तिष्क, और अन्य अंग।

  • समाप्ति (Termination):
    इस चरण में, भ्रूण का विकास पूर्ण होता है और शिशु तैयार होकर गर्भावस्था से बाहर निकलता है।

  • ये भ्रूणपोष के विभिन्न प्रकार हैं जो शिशु के विकास की विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं।

3- एक प्रारुपिक बीजाण्ड की संरचना का सचित वर्णन ।

 प्रारुपिक बीजाण्ड की संरचना (Structure of a Prokaryotic Cell):

प्रारुपिक बीजाण्ड (Prokaryotic Cell) एक सरल और अविभाज्य से सुसज्जित कोशिका है जिसमें कोशिका का नाभिक नहीं होता। यह सामान्यत: बैक्टीरिया और अर्केया में पाया जाता है।

  • खोली (Cell Wall):
    प्रारुपिक बीजाण्ड में खोली होती है जो कोशिका को समरूपी रखती है और उसे सुरक्षित रखती है।

  • शब्दात्मक जीवाणुकोशिका (Cell Membrane):
    कोशिका की सीमा को बाहरी आवरण के रूप में संरचित करने वाला जिला होता है, जो सेल मेम्ब्रेन या शब्दात्मक जीवाणुकोशिका कहलाता है।

  • आतिपुरुषकारी (Cytoplasm):
    यह कोशिका का अंदरीय क्षेत्र है जिसमें ऊतक और अन्य जीवाणुगत संरचनाएं स्थित हैं।

  • अचीष्ट रिबोसोम (Ribosomes):
    इसमें छोटे गोलीयाँ होती हैं जो प्रोटीन बनाने में सहायक होती हैं।

  • डीएनए (DNA):
    डीएनए, जो गूढ़ा है, यह कोशिका के नाभिक के अंदर स्थित होता है और जीवाणुगत जीवन की ऊतक सृष्टि के लिए जिम्मेदार है।

प्रारुपिक बीजाण्ड की संरचना सामान्यत: निर्जीव विषयों से अलग है और इसमें अनेक बुनियादी संरचनाएं होती हैं जो इसके जीवन क्रियाओं को समरूपी बनाए रखती हैं।

4- लघुबीजाणुधामी का निर्माण तथा लघुबीजाणु जनन ।

Ans- लघुबीजाणुधामी का निर्माण (Structure of a Prokaryotic Cell):

लघुबीजाणुधामी एक प्रारुपिक बीजाणु है जो छोटी आकार की होती है और यह सामान्यत: बैक्टीरिया और अर्केया में पाई जाती है। इसकी संरचना में निम्नलिखित तत्व होते हैं:

  • खोली (Cell Wall):
    लघुबीजाणुधामी में खोली होती है, जो इसे सुरक्षित रखने में मदद करती है और उसका आकार बनाए रखती है।

  • शब्दात्मक जीवाणुकोशिका (Cell Membrane):
    यह कोशिका को आवरणित करने वाला जिला होता है, जिसे सेल मेम्ब्रेन भी कहा जाता है।

  • चौपाराग (Nucleoid):
    लघुबीजाणुधामी में नाभिक की अभावशील स्थिति होती है और उसमें केवल एक डीएनए की एक गोली होती है, जिसे चौपाराग कहा जाता है।

  • राइबोसोम (Ribosomes):
    छोटे गोलियों के रूप में मौजूद होने वाले राइबोसोम प्रोटीन संश्लेषण में सहायक होते हैं।

लघुबीजाणु जनन (Reproduction of Prokaryotes):

लघुबीजाणुधामी का जनन सामान्यत: दो तरीकों से होता है:

  • योग्यता (Binary Fission):
    इसमें, एक लघुबीजाणुधामी अपने डीएनए को दो भागों में विभाजित करती है और उसके दोनों भाग अलग-अलग सिरों में चले जाते हैं, जिससे दो नए बीजाणु बनते हैं।

  • परास्परिक आदान-प्रदान (Conjugation):
    इसमें, दो लघुबीजाणुधामियाँ अपने डीएनए को आपस में आदान-प्रदान करती हैं, जिससे उनमें जीन्स का आपसी अंश बदल जाता है। इससे नए गुणसूत्र उत्पन्न हो सकते हैं।

5- द्विबीजपत भ्रूण का परिवर्धन ।

Ans- द्विबीजपत भ्रूण का परिवर्धन (Development of Dicot Embryo):

द्विबीजपत भ्रूण, जिसे उपादानत: अंग्रेजी में "Dicotyledonous Embryo" कहा जाता है, उदाहरण के रूप में ब्रोकोली, गेंहूँ, और गुलाब के पौधों में पाया जाता है। इसका परिवर्धन निम्नलिखित चरणों में होता है:

  • योजना (Zygote):
    द्विबीजपत भ्रूण का परिवर्धन शुरु होता है जब एक शुक्राणु और एक अंडाणु मिलकर एक योजना (zygote) बनाते हैं।

  • बिजपत्ति (Double Fertilization):
    इसमें, दो प्रमुख स्त्री ऊतक बनते हैं - एक सुपरियर ऊतक जो बीजदान को बनाता है और एक इन्फीरियर ऊतक जो गर्भाशय को बनाता है।

  • भ्रूणकोष (Embryonic Sac):
    यहाँ पर, एक भ्रूणकोष बनता है जो ब्रूनों को सुरक्षित रखता है और उनके विकास को सहायक बनाए रखता है।

  • प्रीएम्ब्र्योनिक विकास (Pre-Embryonic Development):
    भ्रूणकोष में प्रारंभिक विकास के दौरान, एक सिरा बनता है जिससे एक वृक्ष का भ्रूण बनेगा।

  • प्रारंभिक ऊतकों का निर्माण (Formation of Primary Tissues):
    इस चरण में, प्रारंभिक ऊतक जैसे कि ऊतक, सीलेंडरी पुलप, और इन्टीग्रल तंतु बनते हैं जो भविष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण होते हैं।

इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप, द्विबीजपत भ्रूण एक पूर्ण विकसित पौध बनता है जो अपने पर्यावरण में बढ़ सकता है।

6- बीजांड का परिवर्धन तथा गुरु बीजाणु जनन ।

Ans- बीजांड का परिवर्धन (Development of Seed):

  • योजना (Fertilization):
    बीजांड का परिवर्धन योजना के साथ शुरु होता है, जिसमें एक पुरुषकारी ऊतक एक नारीगर्भी ऊतक से मिलता है। इससे एक योजना बनती है जो बीजांड का निर्माण करेगी।

  • गुदांतर (Endosperm):
    बीजांड में गुदांतर बनता है, जो उसमें पोषण सामग्री प्रदान करता है।

  • गुदांतरीय अंग (Cotyledons):
    गुदांतरीय अंग बनते हैं जो बीजांड के अंदर होते हैं और जो पौध के विकास के लिए भोजन प्रदान करते हैं।

  • आगामी विकास (Embryonic Development):
    इस चरण में, बीजांड का आगामी विकास होता है जिसमें पौध, डूडल, रूट, और फूटनोट बनते हैं।

गुरु बीजाणु जनन (Reproduction of Guru Bacteria):

  • गुरु बीजाणु का विभाजन (Binary Fission of Guru Bacteria):
    गुरु बीजाणुओं का प्रमुख जनन तंतु बाइनरी फिशन (Binary Fission) के द्वारा होता है, जिसमें एक बीजाणु अपने डीएनए को दो भागों में विभाजित करके दो नए बीजाणुओं को उत्पन्न करता है।

  • त्रिभाजन (Multiple Fission):
    कुछ गुरु बीजाणु त्रिभाजन या बहुभाजन (Multiple Fission) के द्वारा भी जनन करते हैं, जिसमें एक बीजाणु एकाधिक बीजाणुओं में विभाजित होता है।

इस प्रकार, बीजांड और गुरु बीजाणु के जनन प्रक्रियाएँ उनके संरचना और जीवनक्रियाओं के अनुसार अलग होती हैं।

7- परागण, परागण के प्रकार, परागण के लाभ तथा हानि । 

Ans-    परागण (Pollination) :-

जब परागकण परागकोष से निकलकर उसी पुष्प या उस जाति के दूसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं, तब इस क्रिया को परागण कहते हैं।

परागकण नर जनन इकाई है जो परागकोष से उत्पन्न होते हैं, परागकोष के फटने से परागकण पुंकेसर से स्वतंत्र हो जाते हैं।

परागण के प्रकार (Types of Pollination) :-

दो प्रकार के होते है –

चित्र :- स्वपरागित तथा परपरागित पुष्प।

  1. स्वपरागण (Self Pollination)

  2. परपरागण (Cross pollination)
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स्वपरागण (Self Pollination) :-

जब एक ही पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं या उसी पौधे के अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं तब यह स्वपरागण कहलाता है।

ऐसी क्रिया केवल उभयलिंगी या द्विलिंगी (bisexual) पौधों में ही होती है।

पौधों में पुष्प उन्मील्य परागणी (chasmogamous) या अनुन्मील्य परागणी (cleistogamous) होते हैं।

उन्मील्य परागणी पुष्प अन्य प्रजाति के पुष्पों के समान ही होते हैं जिसके परागकोष एवं वर्तिकाग्र अनावृत (exposed) होते हैं।

FlowerParts goldचित्र :- उन्मील्य परागणी पुष्प।

अनुन्मील्य परागणी पुष्प कभी भी अनावृत नहीं होते हैं। ऐसे पुष्पों में परागकण पुष्प के अंदर ही बिखरने से स्वपरागण होता है। इन पुष्पों को अनुन्मील्यकी पुष्प (cleistogamous flowers) करते हैं। जैसे – वायोला, कनकौआ, मूँगफली, पोर्चुलाका।

imageचित्र :- अनुन्यमील्यकी पुष्प।

परपरागण (Cross Pollination) :-

जब एक पुष्प के परागकण दूसरे पौधे पर अवस्थित पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं तब उसे परपरागण कहते हैं।

यह क्रिया समान्यत: एकलिंगी पुष्पों में होते है किंतु कभी-कभी द्विलिंगी पुष्पों में भी होते हैं इसके लिए पुष्पों में कुछ अनुकूलन हो जाते हैं।

परपरागण दो प्रकार का होता है –

(a) सजातपुष्पी परागण (Geitonogamy) :-

जब एक पादप के एक पुष्प के परागकणों का उसी पादप के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्रों तक स्थानांतरण होता है तब वह सजातपुष्पी परागण कहलाता है। इसमें परागकणों के स्थानांतरण के लिए कारकों (agents) की आवश्यकता होती है।

(b) परनिषेचन (Xenogamy) :–

जब भिन्न पादपों के परागकण भिन्न पादपों के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं तब इस प्रकार की क्रिया को पर-निषेचन कहते हैं। इस प्रकार के पर-निषेचन में हवा, कीट , पानी आदि कारकों की आवश्यकता होती है।

Pollination 722x420 2चित्र :- कीट परागित पुष्प।

परपरागण के कारक (agent) :-

कारक पर-परागण का प्रकार

कीट एंटोमोफिली

पक्षी और्निथोफिली

जानवर जूफिली

जल हाइड्रोफिली

वायु अनिमोफिली

स्वपरागण के लाभ (Advantages of Self Pollination) :-

  1. इस क्रिया में बाहरी कारकों (agents) जैसे – हवा, जल, कींट तथा अन्य जंतुओं की आवश्यकता नहीं होती है।

  2. इस क्रिया के समय परागकणों (pollen grains) का स्थानांतरण एक पुष्प से अन्य पुष्प में नहीं होता है जिसके परिणामस्वरूप परागकणों की बर्बादी बहुत कम होती है।

  3. स्वपरागित पुष्पों में परागण तथा निषेचन सुनिश्चित होते हैं।

  4. इस क्रिया से उत्पन्न पौधों के लक्षणों में कोई परिवर्तन नहीं होते हैं।

स्वपरागण की हानियां (Disadvantages of Self Pollination) :-

  1. इसके फलस्वरुप संतान दुर्बल होते है।

  2. ऐसे क्रिया से उत्पन्न संताने विभिन्न वातावरण के प्रति अनुकूलित नहीं होते हैं।

  3. पौधों में कोई आनुवंशिक दोष उत्पन्न होने पर इस क्रिया से दूर नहीं हो पाते हैं।

परपरागण के लाभ (Advantages of Cross Pollination) :-

  1. इससे उत्पन्न संतति अधिक जीवनक्षम होते हैं।

  2. इससे नए वांछनीय (desirable) गुण उत्पन्न होते हैं।

  3. यह जीवों के क्रमविकास में सहायक होता हैं।

  4. इससे उत्पन्न पौधों में अवांछनीय गुणों का विलोप हो जाता है।

  5. इससे उत्पन्न संतानों में विभिन्नता (variation) अधिक होती है।

परपरागण की हानियां (Disadvantages of Cross Pollination) :-

  1. इस क्रिया में अनिश्चितता बनी रहती है, क्योंकि पुष्पों को इसके लिए बाहरी साधनों पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

  2. इसके लिए परागकण बहुत बड़ी मात्रा में बनते हैं जिससे पौधे को ज्यादा ऊर्जा खर्च करना पड़ता है।

  3. अनेक परागकण व्यर्थ चले जाते हैं।

  4. इससे प्राप्त बीज मिश्रित गुण वाले होते हैं।


CHAPTER - 2

                         मानव जनन (Human Reproduction) 

1- अपरा (placenta) की परिभाषा एवं अपरा के कार्य।

Ans- अपरा (Placenta):

परिभाषा (Definition):
अपरा एक जीवनधारी पदार्थ है जो माँ के गर्भाशय और शिशु के बीच एक सशक्त संबंध स्थापित करने के लिए बनता है। यह एक अद्भुत संगठन होता है जो गर्भाशय की दीवार से जुड़ा होता है और भविष्य के शिशु को पोषित करने में मदद करता है।

कार्य (Functions):

  • पोषण (Nutrient Transfer):
    अपरा भ्रूण को आवश्यक पोषक तत्वों, ऑक्सीजन, और हॉर्मोन्स प्रदान करती है जो उसके सही विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं।

  • अपशिष्ट उत्सर्जन (Waste Elimination):
    अपरा शिशु के अपशिष्टों को माँ की शरीर से बाहर निकालने में मदद करती है।

  • ओर्गनोक्षेत्र परिपालन (Organ Exchange):
    इसमें भ्रूण और माँ की शरीर के बीच विभिन्न सांविदानिक प्रवृत्तियां होती हैं, जो शिशु की सही विकासशीलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

अपरा के लाभ तथा हानि (Advantages and Disadvantages of Placenta):

  • लाभ (Advantages):

    • पोषण में सुधार (Improved Nutrition): अपरा शिशु को सुधारित पोषण प्रदान करके उसके सही विकास को सुनिश्चित करती है।

    • ऑक्सीजन की आपूर्ति (Supply of Oxygen): अपरा द्वारा ऑक्सीजन भ्रूण को पहुंचाई जाती है, जिससे शिशु के सही संविकासशीलता के लिए अवश्यक है।

  • हानि (Disadvantages):

    • अवसादित विषयों का संवहन (Transfer of Unwanted Substances): कभी-कभी, अपरा द्वारा शिशु को अवसादित विषयों की आपूर्ति हो सकती है जो उसके लिए हानिकारक हो सकती है।

2 - नर (पुरुष) के जनन तंत्र का स्वच्छ एवं नामांकित चित्र बनाइए।

Ans -         

3 - मादा जनन तन्त्र का स्वच्छ नामांकित चित्र बनाईये?

Ans -         

   

4 - युग्मकजनन क्या है ? नामांकित चित की सहायता से मानन में शुक्रजनन की प्रक्रिया का वर्णन किजिए।

Ans - युग्मक जनन (Gametogenesis)-युग्मकजनन का अर्थ है दो भिन्न प्रकार के युग्मकों का निर्माण। इस क्रिया में नर जननांग (वृषण) से नर युग्मक तथा मादा जननांग (अण्डाशय) से मादा युग्मक का निर्माण होता है। लैंगिक जनन हेतु युग्मकों का बनना अपरिहार्य होता है। यह लैगिक जनन की एक निषेचनपूर्व परिघटना (prefertilization event) है। मानव में नर युग्मक शुक्राणुओं का बनना शुक्रजनन (spermatogenesis) तथा मादा युग्मक (अण्डाणु) का बनना अण्डजनन (oogenesis) कहलाता है|  

शुक्राणुजनन

  • शुक्राणुजनन पुरुष जननग्रंथि या वृषण में होता है। कशेरुकियों के वृषण जर्मिनल एपिथेलियल कोशिकाओं द्वारा सीमाबद्ध कई शुक्रजनक नलिकाओं से बनते हैं।

  • शुक्राणुजनन की प्रक्रिया के दौरान जर्मिनल एपिथेलियम की कोशिकाओं द्वारा शुक्राणुओं का उत्पादन किया जाता है। लेकिन कुछ जानवरों में, जैसे कि स्तनपायी और मोलस्का, आदि में दैहिक कोशिकाएं होती हैं जिन्हें सर्टोली कोशिकाओं के रूप में जाना जाता है जो जनन कोशिकाओं के बीच स्थित होती हैं।

  • सर्टोली कोशिकाएं बढ़ते शुक्राणु को पोषक तत्व प्रदान करती हैं और विभेदक कोशिकाओं को सहारा देती हैं। कीटों में सर्टोली कोशिकाओं का अभाव होता है।

  • शुक्राणुजनन एक सतत प्रक्रिया है जिसकी सुविधा के लिए दो अलग-अलग चरणों में जांच की जा सकती है। 1. शुक्राणु गठन; 2. शुक्राणुजनन।

5 - मानव में अण्डाणुजनन की प्रक्रिया का सचित्त वर्णन ।

Ans -   युग्मकजनन (Gametogenesis) युग्मकजनन एक जटिल प्रक्रम है, इसमें अर्द्धसूत्री और समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित (Haploid) युग्मकों (शुक्राणु/अण्डाणु) का निर्माण होता है। 

अण्डाणुजनन (Oogenesis) अण्डाशय की ग्राफियन पुटिका (Graafian follicles) के निर्माण की प्रक्रिया, अण्डाणुजनन कहलाती है। अण्डाणुजनन प्रक्रिया अण्डजनन की प्रक्रिया को तीन भागों में बाँटा गया है।

 1. गुणन प्रावस्था (Multiplication Phase) अण्डाशय के निर्माण के समय ही प्राथमिक जनन कोशिकाएँ अण्डाशयी पुटिकाओं (0varian follicles) के रूप में एकत्रित हो जाती हैं, जिसमें से एक कोशिका अण्डाणु मातृ कोशिका (Egg mother cell) के रूप में विभेदित होती है।

 2. वृद्धि प्रावस्था (Growth Phase) यह प्रावस्था बहुत लम्बी होती है। अण्डाणु मातृ कोशिका, अण्डाणु जनन कोशिका या ऊगोनियम (0ogonium) में विभेदित होकर वृद्धि प्रावस्था में प्रवेश करती हैं। यह अधिक मात्रा में पोषक पदार्थों को संचित करके आकार में वृद्धि कर लेती है। इसे पूर्व अण्डाणु कोशिका या प्राथमिक ऊसाइट (Primary 0OCyte) कहते हैं।

 3. परिपक्वन अवस्था (Maturation Phase) ग्राफियन पुटिका के परिपक्व होने के बाद इसमें उपस्थित प्राथमिक ऊसाइट (Primary 00cyte) में प्रथम अर्द्धसूत्री विभाजन होता है, जो असमान होता है, जिसके फलस्वरूप एक अगुणित द्वितीयक ऊसाइट (Haploid Secondary 00cyte) और एक छोटी लोपिकाओं (Polar body) का निर्माण होता है। ग्राफियन पुटिका के फटने से यह द्वितीयक अण्डाणु कोशिका मुक्त होकर फैलोपियन नलिका में प्रवेश कर जाती है। इसमें द्वितीय अर्धसूत्री विभाजन शुक्राणु के अण्डाणु में प्रवेश के पश्चात् होता है । 

शुक्राणुजनन और अण्डाणुजनन में अन्तर निम्नलिखित हैं शुक्राणुजनन अण्डाणुजनन यह प्रक्रिया वृषणों में होती है। यह प्रक्रिया अण्डाशयों में होती है। इसमें वृद्धि प्रावस्था छोटी होती है। वृद्धि प्रावस्था बहुत लम्बी होती है। एक प्राथमिक शुक्राणु कोशिका से चार अगुणित शुक्राणुओं का निर्माण होता है। प्राथमिक अण्डाणु कोशिका से  केवल एक अगुणित निर्माण होता है। स्पर्मेटिइस से थान्तरण द्वारा गतिशील शुक्राणुओं का निर्माण होता है। अचल आण्डाणु में कायान्तरण नहीं होता है। दोनों अर्द्धसूत्री विभाजन शुक्राणु निर्माण से पूर्व हो जाते हैं। दूसरा अर्द्धसूत्री विभाजन अण्डाणु में शुक्राणु के प्रवेश के बाद पूर्ण होता है। 

शुक्राणुजनन और अण्डाणुजनन में समानताएँ ⦁    दोनों क्रियाएँ तीन प्रावस्था में पूर्ण होती हैं- गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था और परिपक्वन प्रावस्था। ⦁    दोनों क्रियाएँ जनदों की जनन उपकला कोशिकाओं में होती हैं। युग्मकजनन का महत्त्व युग्मकजनन एक जटिल प्रक्रम है। इसमें अर्द्धसूत्री और समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मकों का निर्माण होता है। नर और मादा युग्मकों के निषेचन के समय समेकन (Fusion) से द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है। युग्मकजनन और निषेचन के फलस्वरूप जीवधारी का गुणसूत्र प्रारूप निश्चित बना रहता है।


CHAPTER - 3

                        जनन स्वास्थ्य (Reproductive Health):-


1 - IVF (पाले निषेचन ) तकनीक पर टिप्पणी कीजिए।

Ans - IVF (पाले निषेचन) तकनीक पर टिप्पणी:

परिभाषा (Definition):
IVF या पाले निषेचन एक प्रजनन तकनीक है जिसमें अंडाणु और शुक्राणु को पेट्री डिश में बाहरी औद्योगिक परिस्थितियों में मिलाया जाता है, और फिर उत्पन्न भ्रूण को माँ की गर्भ में स्थापित किया जाता है।

तकनीक (Procedure):

  • अंडाणु प्राप्ति (Egg Retrieval):
    माँ की बुद्धिमत्ता के तहत, अंडाणु प्राप्त किए जाते हैं, जो उत्तरदात्री द्वारा एक सुर्जिकल प्रक्रिया के माध्यम से की जाती है।

  • शुक्राणु प्राप्ति (Sperm Retrieval):
    शुक्राणु उत्तरदात्री द्वारा प्राप्त किए जाते हैं और सामान्यत: अंडाणु के साथ मिलाए जाते हैं।

  • पाले निषेचन (In Vitro Fertilization):
    अंडाणु और शुक्राणु को पेट्री डिश में बाहरी औद्योगिक परिस्थितियों में मिलाया जाता है, जहां यौन शक्ति और गर्भनाली से बाहर उत्पन्न भ्रूण तैयार होता है।

  • भ्रूण स्थापन (Embryo Transfer):
    एक या एक से अधिक भ्रूणों को माँ की गर्भनाली में स्थापित किया जाता है।

टिप्पणी (Comments):

  • IVF तकनीक वे जोड़ों को जिनके नाते बच्चे पैदा करने में समर्थ नहीं हैं, उनके लिए एक विकल्प प्रदान करती है।

  • यह विशेषज्ञों की मदद से किया जाता है और कई बार बार-बार प्रयासों की आवश्यकता होती है।

  • IVF विधि जीवनशैली और भ्रूण स्थापन के साथ सम्बंधित चुनौतियों के साथ आती है।

2 - जनसंख्या विस्फोट एवं निवारण पर निबन्ध ।

Ans - जनसंख्या विस्फोट एवं निवारण:

प्रस्तावना (Introduction):
जनसंख्या विस्फोट एक ऐसी समस्या है जो कई देशों में एक गंभीर समस्या बन चुकी है। यह एक समाज, आर्थिक, और सामाजिक स्तर पर प्रभाव डाल सकता है।

जनसंख्या विस्फोट (Population Explosion):
जनसंख्या विस्फोट एक स्थिति है जिसमें जनसंख्या अत्यधिक द्रुति से बढ़ती है और यह समस्या एक समाज में सामाजिक, आर्थिक, और स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावित कर सकती है।

निवारण (Prevention):

  • शिक्षा और साक्षरता:
    शिक्षा को बढ़ावा देना और साक्षरता को बढ़ाना एक महत्वपूर्ण कदम है जो जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

  • गर्भनिरोधक उपाय:
    गर्भनिरोधक उपायों के प्रचार-प्रसार की बढ़ाई जानी चाहिए ताकि लोग परिपर्ण जानकारी प्राप्त कर सकें और अनुवादन कर सकें।

  • स्वास्थ्य सेवाएं:
    शिशु मृत्यु दर कम करने और उच्च जीवनकाल की सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देना भी जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने में मदद कर सकता है।

सारांश (Conclusion):
जनसंख्या विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए सही दिशा में कदम उठाना अत्यंत महत्वपूर्ण है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए समृद्धि और समृद्धि साधना संभव हो सके।



CHAPTER - 4

वंशागति एवं विविधता के सिद्धान्त :- (Principles of Heredity and Variation) 


1 -    डाउन सिण्ड्रोम क्या है ? इस पर टिप्पणी लिखिए।                 

 Ans-  डाउन सिण्ड्रोम -    डाउन सिण्ड्रोम एक जन्मात्मक रोग है जिसमें व्यक्ति का एक अत्यधिकता       क्रोमोसोम 21 में होता है। इससे विकसित होने वाले व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक समस्याएं हो सकती हैं।

लक्षण:

  • मानसिक विकसन में देरी

  • अव्यवस्थित मांसपेशियों की विकसन

  • उच्च रक्तचाप और दिल संबंधित समस्याएं

टिप्पणी:

यह सिण्ड्रोम गर्भावस्था में होने वाले एक गर्भवती महिला के बच्चे में होने वाले गैरसामान्य विकास की एक स्थिति है। इसके बावजूद, इन व्यक्तियों को समर्थन और साथीता की आवश्यकता होती है, ताकि उन्हें समाज में सहजता से शामिल किया जा सके। उच्चतम स्तर का समर्थन, शिक्षा और समाज में उनके समाहित होने का सामर्थ्य उन्हें सकारात्मक और आत्मनिर्भर बनाता है।

            

2 -  जीनरूप तथा दृश्यरूप लक्षण पर टिप्पणी कीजिए।

Ans - दृश्यरूप या समलक्षणी (Phenotype)-जब तुलनात्मक लक्षणों को ध्यान में रखकर जीवधारियों के मध्य संकरण कराया जाता है तो प्राप्त सन्तानों के बाह्य रूप अनुपात को दृश्यरूप या समलक्षणी (phenotype) अनुपात कहते हैं।

जीनरूप या समजीनी (Genotype)-उपर्युक्त संकरण में जीन संरचना के आधार पर अनुपात को समजीनी (genotype) अनुपात कहते हैं।

उदाहरण-एंकसंकर क्रॉस (monohybrid cross) में F 2 पीढ़ी का दृश्यरूप अनुपात 3 : 1 तथा जीन-रूप अनुपात 1 : 2 : 1 होता है।


3 - क्रॉसिंग ओवर क्या है।

Ans - क्राॅसिंग ओवर (Crossing Over) :-

वैसी प्रक्रिया जिसमें एक गुणसूत्र पर स्थित जीन्स का एक समूह समजात गुणसूत्र पर स्थित समान जीनों के समूह द्वारा स्थान परिवर्तन कर लेता है, उसे विनिमय या क्रॉसिंग ओवर कहते हैं।

  • एक गुणसूत्र में उपस्थित सभी जीन्स सामान्यत: रेखीय क्रम में स्थित रहते हैं एवं सहलग्न होते है। ऐसे जीनों का पुनर्योजन (Recombination) जिस क्रिया द्वारा होता है उसे विनिमय कहते हैं।

  • माॅर्गन एवं कैसल ने 1912 में क्रॉसिंग ओवर शब्द का नामकरण किया।

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विनिमय या क्रॉसिंग ओवर की क्रियाविधि।

  • क्राॅसिंग ओवर का आरंभ अर्धसूत्री विभाजन के प्रोफेज – I की पैकीटीन अवस्था में होता है।

  • इस अवस्था में समजात गुणसूत्र, युग्मों (pairs) में रहते हैं तथा प्रत्येक समजात गुणसूत्र दो क्रोमेटिड्स में बट जाते हैं।

  • इस अवस्था में बीच के दो असमजात क्रोमेटिड्स, क्रॉसिंग ओवर में भाग लेते हैं।

  • ये दोनों जिस स्थान पर एक दूसरे को क्रॉस करते हैं उस स्थान को काइज्मा कहते हैं।

  • काइज्मा वाले स्थान से क्रोमेटिड्स टूट जाते हैं फिर दोनों एक दूसरे पर विनिमय या क्रॉस कर लेते हैं जिससे समजात गुणसूत्रों के कुछ जीन्स आदान-प्रदान कर एक दूसरे पर हो जाते है।

IMG 20230103 011252चित्र :– काइज्मा

  • जहां पर क्रोमेटिड्स क्रॉस करते हैं उसे क्रॉस ओवर का स्थान कहते हैं। इसी के कारण काइज्मा उत्पन्न होते हैं।

  • काइज्मा के स्थान पर क्रोमेटिड्स टूट जाते हैं एवं बाद में वे इस प्रकार जुड़ते हैं कि उनके समजात खंड का विनिमय हो जाता है।

  • इस प्रकार के विनिमय से उत्पन्न युग्मक (Gametes) चार [दो जनक की तरह एवं दो पुन: संयोजन (Recombination) वाले] प्रकार के होते हैं।

  • पुन: संयोजन से जीवों के विकास की क्रिया में सहायता मिलती है तथा नई जातियाँ बनती है।

क्रॉसिंग ओवर का महत्व (Importance of Crossing Over) :-

  1. इस क्रिया के कारण माता-पिता के गुण उनके संतानों में जाते हैं।

  2. इस क्रिया की पुनरावृति से गुणसूत्र का मानचित्र तैयार किया जाता है।

  3. इसके कारण जीवों में विविधता उत्पन्न होती है।

4 - सह प्रभाविता पर टिप्पणी लिखिए।

Ans - सहप्रभाविता - 

वंशागति का वह प्रकार जिसमें किसी विषमयुग्मजी (heterozygous) में दोनों एलील अभिव्यक्त होते हैं सहप्रभाविता कहलाता है।

मनुष्य में AB रक्त समूह इसका उदाहरण है।

एलील I A से एण्टीजन A तथा I B से एण्टीजन B बनता है। एलील कोई एण्टीजन नहीं बनाता। एलील I A व I B दोनों सहप्रभावी हैं। किसी मनुष्य में 3 में से 2 एलील हो सकते हैं। जब एलील I A I B प्रकार के होते हैं, तब रक्त समूह AB होता है जो सहप्रभाविता का उदाहरण है।

5 - प्रभाविता तथा अप्रभाविता मे विभेद कीजिए।

Ans - प्रभाविता और अप्रभाविता में अन्तर -  


                    प्रभावित।

                  अप्रभावित।

इसमें असमान कराको के जोड़ों में कोई एक  कारक दूसरे पर प्रभावी हो जाता है।


इसमें असमान कारकों के जोड़ों में से कोई  एक कारक दूसरे से छिप या दब जाता है।


यह संकरण के पश्चात प्रथम पीढ़ी में विप्रयासी  गुणों के युग्म में दिखाई देती है।

यह संकरण के पश्चात प्रथम पीढ़ी में विप्रायासी गुणों के युग्म में उपस्थित किन्तु प्रकट नहीं होता 

6 - आनुवांशिक रोग क्या है |

का प्रतिपादन किया जिन्हें मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम कहा जाता है। इन्हें मेण्डलवाद के नाम से जाना जाता है। आनुवंशिकता के क्षेत्र में इन सिद्धान्तों के Ans - आनुवंशिक रोगया विकार (Hereditary Diseases or disorders)-मानव में लक्षणों की वंशागति गुणसूत्रों पर स्थित,जीन्स के द्वारां होती है। गुणसूत्रों पर स्थित जीन्स में उत्परिवर्तन या गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन के कारण अनेक विकार या रोग उत्पन्न हो जाते हैं। इन रोगों का वहन जीन्स द्वारा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में होता रहता है जैसे डाउन सिण्ड्रोम, दात्र कोशिका अरक्तता, वर्णान्धता, हीमोफीलिया आदिI

7 - मानव में लिंग निर्धारण कैसे होता है।

Ans - मनुष्य में लिंग निर्धारण XY प्रकार का होता है।

लिंग निर्धारण की XY विधि (The XY-method of sex determination)-इस विधि में स्त्री के दोनों लैंगिक गुणसूत्र XX होते हैं तथा पुरुष में एक लैंगिक गुणसूत्र X एवं दूसरा Y होता है। स्त्री में अण्डजनन द्वारा बने सभी अण्डाणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा एक X लैंगिक गुणसूत्र होता है (A + X)I इस प्रकार सभी अण्डाणु जीन संरचना (A + X) में समान होते हैं। अतः स्त्री को समयुग्मकी लिंग (homogametic sex) कहते हैं। इसके विपरीत पुरुष में शुक्राणुजनन से बने 50% शुक्राणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा X गुणसूत्र व कुछ शुक्राणुओं में दैहिक गुणसूत्रों का एक अगुणित सैट तथा Y गुणसूत्र (A + X or A + Y) होता है। इस प्रकार दो प्रकार के शुक्राणुओं का निर्माण होता है। 50% शुक्राणु A + X तथा 50% शुक्राणु A + Y गुणसूत्रों वाले होते हैं। अतः पुरुष को विषमयुग्मकी लिंग (heterogametic sex) कहते हैं।

निषेचन के समय यदि A + Y शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है, तब नर सन्तान (पुत्र) उत्पन्न होती है। यदि अण्डाणु का समेकन A + X शुक्राणु के साथ होता है, तब मादा सन्तान (पुत्री) उत्पन्न होती है। यह केवल संयोग है कि कौन-से शुक्राणु का समेकन अण्डाणु के साथ होता है। इसी के आधार पर सन्तान का लिंग निर्धारण होता है।

8 - मेडल के वशांगति का नियम |

Ans - मेंडल के नियम (Mendel law in Hindi)

मेण्डल ने मटर पर किए संकरण प्रयोगों के निष्कर्षों के आधार पर कुछ सिद्धांतों प्रतिपादन करने के लिए ही मेण्डल को आनुवंशिकी का जनक कहा जाता है। ये निम्न है –


  • प्रभाविता का नियम

  • पृथक्करण का नियम/विसंयोजन का नियम/युग्मकों की शुद्धता का नियम

  • स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम

mendel's laws

प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)

जब मेंडल ने विपर्यासी अर्थात् भिन्न-भिन्न लक्षणों वाले समयुग्मजी पादपों में जब संकर संकरण करवाया तो इस क्राॅस में मेण्डल ने एक ही लक्षण प्रदर्शित करने वाले पादपों का ही अध्ययन किया। तो उसने पाया कि एक प्रभावी लक्षण अपने आप को अभिव्यक्त करता है और एक अप्रभावी लक्षण अपने आप को छिपा लेता है। इसी को प्रभाविता कहा गया है। और इस नियम को मेण्डल का प्रभाविता का नियम कहा जाता है।

पृथक्करण का नियम या विसंयोजन का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Segregation or Law of Purity of Gametes)

युग्मक निर्माण के समय दोनों युग्म विकल्पी अलग हो जाते हैं अर्थात् एक युग्मक में सिर्फ एक विकल्पी जाता है। इसीलिए इसे पृथक्करण का नियम कहते है। युग्मक किसी भी लक्षण के लिए शुद्ध होते है।

पृथक्करण का नियम

जैसे – TT से T प्रकार के युग्मक, Tt से T व t प्रकार के युग्मक प्राप्त होते हैं।

  • F2 पीढ़ी का लक्षण प्रारूप अनुपात (Phenotypic Ratio) 3: 1 तथा जीन प्रारूप अनुपात (Genotypic Ratio) 1: 2: 1 होता है।

संकरपूर्वज संकरण (Back Cross)

F1 पीढ़ी के पौधों ( Tt) का संकरण किसी भी एक जनक से कराना संकरपूर्वज संकरण कहलाता है।

  • प्रभावी जनक के साथ संकरण पर इसका लक्षण प्ररूप अनुपता 100% लम्बे पौधे तथा जीन प्ररूप अनुपात 1: 1 रहता है।

संकरपूर्वज संकरण

  • अप्रभावी जनक के साथ संकरण पर इसका लक्षण प्ररूप अनुपात 50% (50% लंबे व 50% बौने पौधे) रहता है तथा जीन प्रारूप 1: 1 रहता है।

संकरपूर्वज संकरण (Back Cross)

  • 50% – (लंबे पौधे)

  • 50% – (बौने पौधे)

परीक्षण या परीक्षार्थ संकरण (Test Cross)

अज्ञात जीनोटाइप वाली F1 पीढ़ी का संकरण अप्रभावी जनक से करना परीक्षण संकरण कहलाता है।

  • अगर F1 पीढ़ी का जीनोटाइप TT है तो इस संकरण से सभी लम्बे पौधे प्राप्त होते हैं = 100% लम्बे

  • अगर F1 पीढ़ी का जीनोटाइप Tt है तो 50% लम्बे व 50% बौने पौधे प्राप्त होते है।

परीक्षण संकरणपरीक्षण संकरण

परीक्षण संकरण से यह पता लगाया जा सकता है कि F1 पीढ़ी का प्रभावी फीनोटाइप शुद्ध (TT) है या संकर (tt)।

स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent Assortment)

यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है। इस नियम के अनुसार ‘‘किसी द्विसंकर संकरण में एक लक्षण की वंशागति दूसरे लक्षण की वंशागति से पूर्णतः स्वतंत्र होती है। अर्थात् एक लक्षण के युग्मविकल्पी दूसरे लक्षण के युग्मविकल्पी से युग्मक निर्माण के समय स्वतंत्र रूप से पृथक व पुनव्र्यवस्थित होते हैं।’’

इसमें लक्षण प्ररूप अनुपात 9 : 3 : 3 : 1 होता है।

अर्थात् जनकों के लक्षण प्ररूप के अतिरिक्त नये लक्षण प्ररूप बनते हैं। स्पष्ट है पीला रंग गोलाकार बीजों के साथ ही नहीं अपितु झुर्रीदार बीजों के साथ भी आ सकता है।

इसमें जीन प्ररूप अनुपात 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 1 : 2 : 1 होता है।

स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम

मेंडल के नियमों (Mendel law in Hindi) से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्न

1. मेण्डल का पूरा नाम (Mendel’s Full Name) क्या है ?
उत्तर: ग्रेगर जाॅन मेंण्डल (Gregor John Mendel)

2. मेण्डल द्वारा प्रतिपादित नियमों का नाम लिखिए ।
उत्तर:

  •  प्रभाविता का नियम

  • पृथक्करण का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम

  •  स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम

3. परीक्षण संकरण (Test Cross) किसे कहते है ?
उत्तर: F1 पीढ़ी का अज्ञात जीनोटाइप जानने के लिए F1 पीढ़ी का अप्रभावी जनक से संकरण, परीक्षण संकरण कहलाता है।

4. अनुवंशिक लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरण क्या कहलाता है ?
उत्तर: वंशागति

5. प्रभावी लक्षण किसे कहते है ?
उत्तर: वह लक्षण जो पीढ़ी में अभिव्यक्त हो जाता है, प्रभावी लक्षण कहलाता है।

6. आनुवांशिकी का जनक किसे कहा जाता है ?
उत्तर: ग्रेगर जाॅन मेण्डल को।

7. मेण्डल ने अपने प्रयोग किस पौधे पर किए ?
उत्तर: मटर

8. मेण्डल के किस नियम को एक संकर संकरण से नहीं समझाया जा सकता है ?
उत्तर: मेण्डल द्वारा प्रतिपादित स्वतंत्र अपव्यूहन नियम को एक संकर संकरण से समझाया नहीं जा सकता।

Difference Between Phenotype & Genotyple

9. लक्षण प्ररूप व जीन प्ररूप में अंतर क्या है ?

No.

लक्षण प्ररूप (Phenotype)

जीन प्ररूप (Genotype)

1.

किसी जीव की बाह्य प्रतीति या प्रेक्षणीय अभिव्यक्ति है।

किसी जीव का आनुवंशिक संघटन जीनोटाइप कहलाता है।

2.

लक्षण प्ररूप समय व पर्यावरण के अनुसार बदल सकता है। जैसे – शिशु, किशोर, युवा वृद्ध।

किसी जीव के पूरे जीवन काल में जीनोटाइप समान रहता है।

3.

समान लक्षण प्ररूप वाले जीवों का जीनोटाइप निम्न हो सकता है जैसे-लाल पुष्प वाले पौधों का जीनोटाइप Rr व RR हो सकता है।

समान जीनोटाइप के जीव किसी दिये समय व पर्यावरण में समान फीनोटाइप प्रदर्शित करेंगें।

4.

समान जीनोटाइप के जीव किसी दिये समय व पर्यावरण में समान फीनोटाइप प्रदर्शित करेंगें।

लक्षण प्ररूप को प्रत्यक्ष अवलोकन से जाना जा सकता है। इसका प्रत्यक्ष अध्ययन नहीं किया जा सकता। इसे पूर्वजों व संतति के संकरण से जाना जाता है।





उत्तर :10. मेण्डल किस देश के निवासी थे ?
उत्तर: ऑट्रिया

11. मेण्डल के कारकों को जोहानसन ने क्या नाम दिया ?
उत्तर: जीन

12. उद्यान मटर का वानस्पति नाम क्या है ?
उत्तर: पाइसम सैटाइवम

13. जीन को परिभाषित कीजिए-
उत्तर: मेण्डल ने जिन वंशागति की इकाइयों को कारक कहा उन्हें आज जीन कहा जाता है। जीन वंशागति की इकाई है जो किसी लक्षण का नियंत्रण करती है।

14. सुजननिकी का क्या अर्थ है ?
उत्तर: मानव जाति के आनुवंशिक सुधार व आनुवंशिक रोगों से बचाव से संबंधित विज्ञान की शाखा सुजननिकी कहलाती है।

15. जीन विनिमय किस प्रकार के जनन की विशेषता है ?
उत्तर: लैंगिक जनन में ही जीन विनिमय होता है।

16. मेंण्डलवाद की पुनर्खोजकर्ता के नाम क्या है ?

उत्तर:

  • ह्यूगो डी व्रीज

  • कार्ल कोरेन्स

  • एरिक शेरमाॅक


Ques - लिंग सहलम गुणों से आप क्या समझते है।

Ans - लिंग-सहलग्न गुण तथा इनकी वंशागति

लैंगिक गुणसूत्रों पर कुछ दैहिक लक्षणों के जीन भी विद्यमान होते हैं। ऐसे लक्षणों को लिंग-सहलग्न लक्षण कहते हैं तथा इनकी वंशागति लिंग-सहलग्न वंशागति (sex-linked inheritance) कहलाती है। मनुष्य में 120 लिंग-सहलग्न लक्षणों की खोज हो चुकी हैं।

मनुष्य में लिंग निर्धारित करने वाले X तथा y गुणसूत्रों का कुछ भाग समजात (homologous) होता है, जो अर्द्धसूत्री विभाजन के समय सूत्रयुग्मन (synapsis) में सहायक होता है। लिंग-सहलग्न लक्षणों को तीन समूहों में बाँट लेते हैं-

(क)x-सहलग्न (X-linked) लक्षण-वे लक्षण जिनके जीन X-गुणसूत्र के असमजात विखण्डों पर रहते हैं अर्थात् इनका समजात जीन Y-गुणसूत्र पर नहीं होता। इस प्रकार के जीन पिता से पुत्री को तथा माता से पुत्र एवं पुत्री को प्राप्त हो सकते हैं। इस प्रकार की वंशागति क्रिस-क्रॉस वंशागति (criss-cross inheritance) कहलाती है। X-सहलग्न लक्षण प्रायः अप्रभावी होते हैं, जैसे-वर्णान्धता (colourblindness), हीमोफीलिया (haemophilia) आदि।

(ख)Y-सहलग्न (Y-linked) लक्षण-इसके जीन Y-गुणसूत्र के असमजात विखण्ड पर होते हैं अर्थात् इसके समजात जीन X-गुणसूत्र पर नहीं होते। Y-गुणसूत्र पर स्थित होने के कारण ये लक्षण पिता से पुत्रों को प्राप्त होते हैं जैसे कर्ण पल्लव (ear pinnae) पर मोटे तथा लम्बे बालों की उपस्थिति अर्थात् हाइपरट्राइकोसिस (hypertrichosis)

(ग) XY-सहलग्न (XY-linked) लक्षण–वे लक्षण जिनके जीन X तथा Y दोनों गुणसूत्रों के समजात विखण्डों पर एलील्स (alleles) के रूप में होते हैं। इनकी वंशागति सामान्य कायिक लक्षणों की तरह होती है।

वर्णान्धता की वंशागति (Inheritance of Colourblindness)

उदाहरण 1-एक वर्णान्ध पुरुष तथा एक सामान्य स्त्री की सन्तानों में-सभी पुत्रियाँ वाहक और सभी पुत्र सामान्य होंगे।

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उदाहरण 2-वाहक स्त्री तथा एक सामान्य पुरुष की सन्तानों में आधी पत्रियाँ सामान्य तथा आधी वाहक होंगी, जबकि 50% पुत्र सामान्य तथा 50% पुत्र वर्णान्ध होंगे।

उदाहरण 3-वाहक स्त्री तथा वर्णान्ध पुरुष की सन्तानों में 50% पुत्र वर्णान्ध, 50% पुत्र सामान्य, 50% पुत्रियाँ वर्णान्ध तथा 50% पुत्रियाँ वाहक होंगी।

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नोट-हीमोफीलिया की वंशागति (Inheritance of Haemophilia)यह भी एक X-सहलग्न अप्रभावी लक्षण है। इसकी वंशागति वर्णान्धता की वंशागति के समान ही होती है। वर्णान्धता सहलग्न लक्षणों की भाँति हीमोफीलिया की वंशागति के फ्लोचार्ट बनाए जा सकते हैं।


CHAPTER - 5 

                        वंशागति का आण्विक आधार ( Molecular Basis of Heredity )

1 - DNA तथा RNA में अन्तर ।

Ans -  DNA और RNA के बीच निम्नलिखित प्रमुख अंतर हैं:

विशेषता

DNA

RNA

शर्करा

डीऑक्सीराइबोस

राइबोस

नाइट्रोजन क्षार

एडेनाइन (A), साइटोसिन (C), गुआनाइन (G), टाइमिन (T)

एडेनाइन (A), साइटोसिन (C), गुआनाइन (G), यूरैसिल (U)

प्रकृति

स्थिर

अस्थिर

संरचना

दोहरी हेलिक्स

एकल हेलिक्स

स्थान

नाभिक

साइटोप्लाज्म

कार्य

वंशानुगत गुणों को संग्रहीत करना और संचारित करना, प्रोटीन संश्लेषण में भाग लेना

प्रोटीन संश्लेषण, राइबोसोम के निर्माण, कुछ अन्य कार्यों में भाग लेना

शर्करा

DNA में डीऑक्सीराइबोज शर्करा होती है, जबकि RNA में राइबोज शर्करा होती है। डीऑक्सीराइबोज में एक हाइड्रोजन परमाणु कम होता है, जो इसे राइबोज से अलग करता है।

नाइट्रोजन क्षार

DNA में चार प्रकार के नाइट्रोजन क्षार होते हैं: एडेनिन (A), साइटोसिन (C), थाइमिन (T), और गुआनिन (G)। RNA में भी चार प्रकार के नाइट्रोजन क्षार होते हैं, लेकिन थाइमिन के स्थान पर यूरैसिल (U) होता है।

प्रकृति

DNA एक स्थिर अणु है, जबकि RNA एक अस्थिर अणु है। DNA का आणविक भार RNA की तुलना में अधिक होता है।

कार्य

DNA का मुख्य कार्य आनुवंशिक जानकारी का भंडारण और संरक्षण करना है। यह जानकारी को कोशिका से कोशिका में स्थानांतरित करने में भी मदद करती है। RNA का मुख्य कार्य प्रोटीन संश्लेषण करना है। यह DNA से प्रोटीन के निर्माण के लिए निर्देश प्राप्त करता है।

स्थान

DNA कोशिका के नाभिक में स्थित होता है। कुछ मामलों में, यह कोशिका झिल्ली में भी पाया जा सकता है। RNA कोशिका के कोशिका द्रव में, नाभिक में, और कुछ मामलों में कोशिका झिल्ली में भी पाया जा सकता है।

उपयोग

DNA और RNA का उपयोग कई अनुप्रयोगों में किया जाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • आनुवंशिक इंजीनियरिंग

  • चिकित्सा निदान

  • दवा विकास

  • जैव प्रौद्योगिकी

  • फोरेंसिक विज्ञान

2 - DNA Fingerprinting क्या है। इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एक ऐसी तकनीक है जो जीवित चीजों के अनुवांशिक मेकअप को दिखाती है। यह जीनोम में उपग्रह डीएनए क्षेत्रों के बीच अंतर खोजने की एक विधि है।

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग क्या है?

सैटेलाइट डीएनए क्षेत्र दोहराव वाले डीएनए के खंड हैं जो किसी विशिष्ट प्रोटीन के लिए कोड नहीं करते हैं। ये गैर-कोडिंग अनुक्रम मनुष्यों के डीएनए प्रोफाइल का एक बड़ा हिस्सा हैं। वे उच्च स्तर के बहुरूपता को दर्शाते हैं और डीएनए फिंगरप्रिंटिंग का आधार हैं। ये जीन सभी प्रकार के ऊतकों में उच्च स्तर का बहुरूपता को दिखाते हैं जिसके परिणामस्वरूप वे फोरेंसिक अध्ययन में बहुत उपयोगी साबित होते हैं।

अपराध स्थल पर पाए गए डीएनए नमूने के किसी भी टुकड़े का विश्लेषण गैर-कोडिंग दोहराव वाले अनुक्रमों में बहुरूपता के स्तर के लिए किया जा सकता है। डीएनए प्रोफाइल का पता लगाने के बाद, संदिग्धों के लिए डीएनए फिंगरप्रिंटिंग करके अपराधी को ढूंढना आसान हो जाता है।

अपराध के दृश्यों के अलावा, फिंगरप्रिंटिंग एप्लिकेशन बच्चे के डीएनए नमूने पर पितृत्व परीक्षण करके एक लावारिस बच्चे के माता-पिता को खोजने में भी उपयोगी साबित होता है।

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग चरण

एलेक जेफ्रीस (Alec Jeffreys) ने इस तकनीक को विकसित किया जिसमें उन्होंने उपग्रह डीएनए का उपयोग किया जिसे वीएनटीआर (वेरिएबल नंबर ऑफ टेंडेम रिपीट) भी कहा जाता है क्योंकि यह उच्च स्तर के बहुरूपता को दर्शाता है।

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग में शामिल कदम निम्नलिखित हैं:

डीएनए को अलग करना।

प्रतिबंध एंडोन्यूक्लीज एंजाइम की मदद से डीएनए को पचाना।

वैद्युतकणसंचलन की प्रक्रिया द्वारा पचने वाले टुकड़ों को टुकड़े के आकार के अनुसार अलग करना।

नायलॉन जैसे सिंथेटिक झिल्लियों पर अलग किए गए टुकड़ों को ब्लॉटिंग करना।

लेबल वाले वीएनटीआर जांच का उपयोग करके अंशों को संकरण करना।

ऑटोरेडियोग्राफी का उपयोग करके संकर अंशों का विश्लेषण करना।

डीएनए फिंगरप्रिंटिंग अनुप्रयोग

जैसा कि पहले चर्चा की गई है, फिंगरप्रिंटिंग की तकनीक का उपयोग फोरेंसिक परीक्षणों और पितृत्व परीक्षणों में डीएनए विश्लेषण के लिए किया जाता है। इन दो क्षेत्रों के अलावा, इसका उपयोग जनसंख्या में एक विशेष जीन की आवृत्ति को निर्धारित करने में भी किया जाता है जो विविधता को जन्म देता है। जीन आवृत्ति या अनुवांशिक बहाव में परिवर्तन के मामले में, विकास में इस परिवर्तन की भूमिका का पता लगाने के लिए फिंगरप्रिंटिंग का उपयोग किया जा सकता है।

3. मानव जीनोम प्रोजेक्ट

Ans - जीनोम क्या है?

  • जीनोम एक जीव में मौजूद समग्र आनुवंशिक सामग्री को संदर्भित करता है और सभी लोगों में मानव जीनोम अधिकतर समान होता है, लेकिन डीएनए का एक बहुत छोटा हिस्सा एक व्यक्ति तथा दूसरे के बीच भिन्न होता है।

  • प्रत्येक जीव का आनुवंशिक कोड उसके डीऑक्सीराइबोज न्यूक्लिक एसिड (डीएनए) में निहित होता है, जो जीवन के निर्माण खंड होते हैं।

  • वर्ष 1953 में जेम्स वाटसन और फ्राँसिस क्रिक द्वारा "डबल हेलिक्स" के रूप में संरचित डीएनए की खोज की गई,जिससे यह समझने में मदद मिली कि जीन किस प्रकार जीवन, उसके लक्षणों एवं बीमारियों का कारण बनते हैं।

  • प्रत्येक जीनोम में उस जीव को बनाने और बनाए रखने के लिये आवश्यक सभी जानकारी होती है।

  • मनुष्यों में पूरे जीनोम की एक प्रति में 3 अरब से अधिक डीएनए बेस जोड़े होते हैं।

खोज का महत्त्व:

  • जेनेटिक वेरिएशन के अध्ययन में सुविधा:

    • एक पूर्ण मानव जीनोम व्यक्तियों के बीच या आबादी के बीच आनुवंशिक भिन्नता के अध्ययन को आसान बनाता है।

4 - DNA Structure वाटसन एवं क्रिक माडल

Ans - वाट्सन तथा क्रिक मॉडल के अनुसार-

  1. प्रत्येक डीएनए अणु वास्तव में दो लम्बी समानान्तर आक्सीराइबोटाइड पॉलीश्रृंखलाओं से निर्मित होता है।

  2. यह दोनों श्रृंखलायें आपस में छोटी सीढ़ीनुमा छड़ ( crossbars) से जुड़ी रहती है। यह हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़ी रहती है।

  3. प्रत्येक पॉलीऑक्सीराइबोटाइड श्रृंखला अनेक मोनोमर डीऑक्सी राइबोटाइड्स पुनरावर्ती इकाई के एक दूसरे से फॉस्फोडाइएस्टर बन्ध द्वारा जुड़ने से निर्मित होती है।

  4. डीएनए की दोनों लम्बी पूरक श्रृंखलाये चक्रिक रूप से एक उभयनिष्ठ (common) अक्ष के चारों ओर नियमित तरीके से कुण्डलित रह कर 2nm व्यास की द्विकुण्डलित (twisted) संरचना बनाती हैं।

  5. डीएनए कुण्डलिनी ( helix ) की सम्पूर्ण लम्बाई पर एक संकरी ( narrow) तथा एक चौड़ी खांच पायी जाती है।

  6. प्रत्येक कुण्डल की चौड़ी खांच 2.2nm व छोटी खांच 1.2nm चौड़ी होती है। यह दोनों एकान्तर रूप से स्थित रहती है। प्रत्येक कुण्डल का एक चक्र 3.4 nm लम्बा होता है जिसमें 10 क्षार युग्म नियमित अन्तराल पर व 2.0 nm चौडा पाये जाते हैं।

  7. शर्करा तथा फॉस्फेट रज्जु बाहर की तरफ व क्षार द्विकुण्डल के भीतरी ओर पाये जाते हैं। 8. क्षार एक दूसरे के ऊपर चट्टे ( stacks ) में व्यवस्थित रहते हैं। जिससे डीएनए अणु एक चक्रिक सीढ़ी (twisted ladder) जैसा दिखाई देता है।

वैज्ञानिकों ने आज वाटसन तथा क्रिक के मॉडल में कुछ सूक्ष्म परिवर्तन किये परन्तु निम्न मुख्य प्रमुख गुण आज भी वहीं है।

  1. डीएनए एक द्विकुण्डलित श्रृंखला है जिसे दोनों सूत्र हाइड्रोजन बन्ध द्वारा जुड़े है ।

  2. क्षार निश्चित अन्तर पर उपस्थित है जिसमें A सदैव T तथा C हमेशा G के साथ युग्म बनाता है।

  3. A+ C की मात्रा T + G के बराबर रहती है (चारगॉफ नियम )

  4. अधिकतर डीएनए दाहिनी ओर ही कुण्डलित होते हैं परन्तु Z – डीएनए बायीं ओर कुण्डलित रहता है।

  5. डीएनए अणु की दोनों पूरक श्रृंखलायें एक दूसरे के प्रति समानान्तर ( anti parallel) रूप से व्यवस्थित होती है। प्रत्येक श्रृंखला में 5′-3′ सिरे होते हैं। एक श्रृंखला को 5′ सिरा दूसरी श्रृंखला के 3′ सिरे के सामने होता है क्योंकि दोनों शृंखला हाइड्रोजन बन्ध के द्वारा प्रति समानान्तर स्थिति में ही जुड़ सकती हैं।

5 - कार्य के आधार पर R.N. A कितने प्रकार के होते है।

Ans - राइबोन्यूक्लिक अम्ल

कोशिका में राइबोन्यूक्लिक अम्ल (R.N.A. = ribonucleic acid), केन्द्रक, राहबोसोम्स व क्लोरोप्लास्ट, माइटोकॉण्डिया तथा कोशिकाद्रव्य में स्वतन्त्र रूप से मिलता है। राइबोन्यूक्लिक अम्ल के अणु में एक पॉलिन्यूक्लियोटाइड शृंखला (polynucleotide chain) होती है।

प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड तीन प्रकार के अणुओं से मिलकर बना होता है। पेन्टोस शर्करा, राइबोस (ribose) नाइट्रोजन क्षारक तथा फॉस्फेट। पेन्टोस शर्करा नाइट्रोजनी क्षारकों (एडीनीन, ग्वानीन, साइटोसीन या यूरेसिल) में से किसी एक से जुड़कर न्यूक्लियोसाइड (राइबोन्यूक्लियोसाइड) अणु बनाता है। यह न्यूक्लियोसाइड फॉस्फेट समूह से मिलकर राइबोन्यूक्लियोटाइड का निर्माण करता है। यहाँ राइबोस शर्करा होने के कारण प्रत्येक न्यूक्लियोटाइड एक राइबोटाइड (ribotide) तथा सम्पूर्ण श्रृंखला पॉलिराइबोटाइड श्रृंखला (polyribotide chain) कहलाती है।

आर०एन०ए० कोशिकीय जीवों में आनुवंशिक नहीं होता। यह आनुवंशिक सूचना के वाहक का कार्य करता है। यह प्रोटीन संश्लेषण का कार्य करता है। अर्थात् आर०एन०ए० सामान्यत: अ-आनुवंशिक (non-genetic) होता है। पादप विषाणुओं तथा कुछ प्राणी विषाणुओं का आर०एन०ए० आनुवंशिक भी होता है।

अ-आनुवंशिक आर०एन०ए० (non-genetic R.N.A.) कार्य के आधार पर यह तीन प्रकार का होता है-

1. राइबोसोमल आर०एन०ए० (Ribosomal R.N.A. or r-R.N.A.)यह राइबोसोम्स के निर्माण में भाग लेने वाला संरचनात्मक अणु है। यह R.N.A. का सबसे स्थायी रूप है। इसका संश्लेषण केन्द्रिक संघटकों (nuclear organiser) द्वारा होता है। यह राइबोजाइम के रूप में भी कार्य करता है। यह सम्पूर्ण R.N.A. का लगभग 75% होता है। इस प्रकार के आर०एन०ए० अणुओं में अपने आप लिपटने तथा हाइड्रोजन बन्धों के द्वारा जुड़ जाने के कारण कुण्डल (loop) बनते हैं। यह प्रोटीन संश्लेषण के समय बहुपेप्टाइड के स्थिरीकरण में सहायता करता है।

2. स्थानान्तरण (हस्तान्तरण) आर०एन०ए० (Transfer R.N.A. or t-R.N.A.)-यह आर०एन०ए० मुक्त रूप से कोशिकाद्रव्य में पाया जाने वाला अनुकूलक अणु (adaptor molecule) है। इसे घुलनशील R.N.A.(Soluble R.N.A.) भी कहा जाता है। ये परिमाप में अपेक्षाकृत छोटे होते है। इनका मुख्य कार्य ऐमीनो अम्ल के अणुओं को राइबोसोम तक पहुँचाना है। इस प्रकार ये प्रोटीन

संश्लेषण में सहायता करते हैं। यह सम्पूर्ण R.N.A. का लगभग 10-15% होते है। 20 ऐमीनो अम्लों के लिए लगभग 60 प्रकार के (-R.N.A. पाए जाते है। राबदहाला (Robert Holley, 1964) ने 1-R.N.A. की संरचना का क्लोवर लीफ (Clover leaf) मॉडल दिया। इसके अनुसार :-R.N.A. अणु में चार भुजाएँ होती हैं-6) प्राहीभुजा, (ii) प्रतिकोडॉन भुजा (iii) P 

Ψ

 भुजा तथा (iv) DHU भुजा।

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3. सन्देशवाहक आर०एन०ए० (Messenger R.N.A. or m-R.N.A.)-ये केन्द्रक D.N.A. से आनुवंशिक सूचनाओं को कोडॉन (codon) के रूप में राइबोसोम पर पहुंचाते हैं और प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करते हैं। सन्देशवाहक आर०एन०ए०. पर आनुवंशिक कूट (genetic code) पाया जाता है। यह R.N.A. का लगभग 5% होते है। यह प्रोटीन संश्लेषण हेतु टेम्लेट की भाँति कार्य करता है। पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के बहुलीकरण के पश्चात् इसका विघटन हो जाता है। इस रैखिक m-R.N.A. अणु के दोनों और छोटे-छोटे ऐसे क्षेत्र होते हैं जिनका अनुवाद नहीं होता, इन्हें UTR कहते हैं।

प्रोकैरियोटिक कोशिका का mRN.A. अणु पॉलिसिस्ट्रॉनिक (Polycistronic) तथा यूकैरियोटिक कोशिका का mR.N.A.मोनोसिस्ट्रॉनिक (monscistronic) होता है। mR.N.A. के दोनों सिरों पर कुछ गैर-अनुवादित स्थल (Untranslated Regions UTR) भी होते हैं जिनका अनुवाद नहीं होता।

6 - अनुलेखन पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए ।

Ans - अनुलेखन - D.N.A. में उपस्थित आनुवंशिक सूचनाओं का m-R.N.A. में स्थानान्तरण अनुलेखन (transcription) कहलाता है। इस प्रक्रिया में D.N.A. के खण्डों पर उनकी अनुपूरक प्रतिलिपियों (complementary transcripta) के रूप में R.N.A. अणुओं का निर्माण होता है।

अनुलेखन इकाई

डी०एन०ए० का अनुलेखन में भाग लेने वाला खण्ड अनुलेखन इकाई बनाता है। D.N.A. में अनुलेखन इकाई के निम्न भाग होते है-एक प्रमोटर, संरचनात्मक जीन, एक समापक या टर्मिनेटर। D.N.A. के अणु प्रतिसमानान्तर होते है। डी०एन०ए० निर्भर आर०एन०ए० पॉलिमरेज (D.N.A. dependent R.N.A. polymerase) राइ बोन्यूक्लियोटाइड्स का बहुलीकरण केवल 

5→3

 दिशा में करता है। अत: डी०एन०ए०का 

3→5

 ध्रुवता वाला रज्जुक ही एक टेम्पलेट (template) की तरह कार्य करता है। डी०एन०ए० का यह रज्जुक टेम्पलेट रज्जुक कहलाता है।

D.N.A. का दूसरा 

5→3

 ध्रुवता वाला रज्जुक अनुलेखन के समय विस्थापित हो जाता है। इसे कोडिंग रग्गुक (coding strand) कहा जाता है। किसी अनुलेखन इकाई में सभी सन्दर्भ विन्दु कोडिंग रज्जुक पर ही बनाए जाते हैं। अन्त में टर्मिनेटर स्थल (terminator site) पर एन्जाइम R.N.A. पॉलिमरेज अलग हो जाता है।

अनुलेखन की क्रियाविधि-यह निम्नलिखित पदों में पूर्ण होती है- (1) डी०एन०ए० निर्भर R.N.A. पॉलिमरेज एन्जाइम का D.N.A. द्विकुण्डलिनी से प्रमोटर पर जुड़ना। एक सिग्मा कारक R.N.A. पॉलिमरेज को सक्रिय करता है।

(2) D.N.A. की दोनों श्रृंखलाओं का अलग होना।

(3) राइबोन्यूक्लियोटाइड ट्राइफोस्फोरस का मोनोफॉस्फेट में परिवर्तन।

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(4) राइबोन्यूक्लियोटाइड मोनोफॉस्फेट अणुओं का फॉस्फोडाइएस्टर बन्धों द्वारा जुड़कर R.N.A. पॉलिन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला का निर्माण। R.N.A. रज्जुक का बनना प्रारम्भ होने पर सिग्मा कारक अलग हो जाता है।

(5) पॉलिन्यूक्लियोटाइड्स श्रृंखला का समापन।

(6) D.N.A. खण्ड का पूर्व स्थिति में वापस आ जाना।

प्रोकैरियोट्स में सभी प्रकार के, R.N.A. का निर्माण केवल एक आर०एन०ए० पॉलिमरेज द्वारा होता है लेकिन यूकैरियोटिक कोशिका में तीन विभिन्न प्राकर के R.N.A. पॉलिमरेज पाए जाते हैं।

D.N.A. रज्जुक के दूरस्थ सिरे पर एक समापन स्थल (termination site) होता है। इस पर एक समापन अनुक्रम (terminator sequence) स्थित होता है। जब R.N.A. पॉलिमरेज इस स्थल पर पहुंचता है तब यह D.N.A. श्रृंखला से अलग हो जाता है तथा R.N.A. का संश्लेषण पूर्ण हो जाता है। इस m-R.N.A. का D.N.A, श्रृंखला से पृथक् होना समापन कारक रो (termination factor-rho) की उपस्थिति के कारण होता है।


7 - आनुवांशिक कूट क्या है? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन किजिए।


Ans - अनुवांशिक कूट (genetic code) से आशय उन नियमों से है जिनका उपयोग करके जीवित कोशिकाएँ आनुवांशिक पदार्थ ‌‌(न्यूक्लिक अम्ल )डीएनए, या न्युक्लिओटाइड त्रिक का mRNA अनुक्रम, या कोडॉन) में कूटबद्ध सूचना को प्रोटीनों में स्थानान्तरित करतीं हैं। कूट का यह स्थानान्तरण (ट्रान्सलेशन) , राइबोसोम द्वारा किया जाता है।सभी प्राणियों का अनुवांशिक कूट (जेनेटिक कोड) बहुत सीमा तक एक समान हैं और इन्हें ६४ प्रविष्टियों वाली एक सारणी द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है।

आधुनिक ज्ञान के अनुसार कहा जाता है कि किसी भी जीवधारी में प्रोटीन संश्लेषण उन समस्त अनुवांशिक संकेतों के प्रतिबिंब को व्यक्त करता है जो डीएनए में अंतर्निहित रहते हैं और डीएनए में न्यूक्लियोटाइड क्रम विशिष्ट प्रोटीन की संरचना व संश्लेषण की गतिओ का नियंत्रण करके अपना कार्य करते हैं। जॉर्ज बीटल एवं एडवर्ड के द्वारा प्रतिपादित 'एक जीन एक एंजाइम सिद्धान्त' के अनुसार प्रत्येक एंजाइम एक विशेष gene के द्वारा नियंत्रित रहता है तथा एक एंजाइम एक से अधिक जीन के द्वारा नियंत्रित होता hai.


CHAPTER - 6 

                        मानव स्वास्थ्य एवं रोग  (Human Health and Disease )


1 - एल्कोहॉल / ड्रग्स के दुरुपयोग पर टिप्पणी


Ans - एल्कोहॉल और ड्रग्स का दुरुपयोग व्यक्ति की सेहत और समाज में हानिकारक प्रभावों का कारण बन सकता है। यह एक समस्या है जो सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है और समाज में असमानता और असहमति पैदा कर सकती है।

एल्कोहॉल का अत्यधिक सेवन शारीरिक और मानसिक समस्याएं उत्पन्न कर सकता है, जबकि ड्रग्स का दुरुपयोग नशे, स्वास्थ्य समस्याएं, और सामाजिक अस्तित्व को प्रभावित कर सकता है।

यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि लोग इस समस्या के प्रति जागरूक हों, और समाज में उचित शिक्षा और संरचनाएं हों ताकि इस पर नियंत्रण पाया जा सके। उचित सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं, साथीता, और समर्थन के माध्यम से इस समस्या का सामना करने वालों को मदद मिल सकती है, जिससे वे एक स्वस्थ और सकारात्मक जीवन जी सकें।

2 - प्रतिजैविक से आप क्या समझते है ? किन्ही दो प्रतिजैविको के नाम लिखिए।

Ans - प्रतिजैविक रासायनिक स्रावित सूक्ष्मजीव यानी कवक या जीवाणु हैं जो हमारी कोशिकाओं को प्रभावित किए बिना शरीर में जीवाणु संश्लेषण तंत्र को अवरुद्ध करते हैं। यह जीवाणुओं को मारने से रोकता है और उन्हें प्रजनन करने से रोकता है।                                                                      
दो उदाहरण हैं:  • एमोक्सिसिलिन    • पेनिसिलिन

3 - मलेरिया रोग के रोगजनक, रोगवाहक, लक्षण तथा उपचार लिखिए।

Ans -      मलेरिया रोग:             

रोगजनक (कारण):

मलेरिया एक प्रकार की जीवाणु (प्लेसमोडियम) के कारण होता है जो मच्छरों के काटने से व्यक्ति के रक्त में प्रवेश करता है। इसे प्रमुखत: मान्सूनी क्षेत्रों में होने वाले मच्छरों के कारण फैलता है।

रोगवाहक (प्रसार):

मलेरिया मौसम के बदलते होने के साथ फैलता है और मच्छरों के काटने से होता है।

लक्षण:

  • बुखार, शिविरों के साथ आने वाला बुखार मलेरिया का सामान्य लक्षण है।

  • शरीर में दर्द और ठंडक आना

  • उल्टी, सिरदर्द, और थकान

उपचार:

  • दवाएँ: एंटीमैलेरियल दवाएँ, जैसे कि क्वाइनीन, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, आदि।

  • बचाव: मच्छरों के काटने से बचाव के लिए मौसमी मोशन और बार्ड निषेधक प्रयोग करें।

  • बच्चों और गर्भवती महिलाओं की देखभाल: इन वर्गों में मलेरिया का सही उपचार और बचाव की जरूरत होती है।

बचाव, सचेती, और सही उपचार के साथ मलेरिया को नियंत्रित किया जा सकता है।

4 - टाइफाइड का कारक लक्षण तथा रोकथाम के उपाय लिखिए ।

Ans - टाइफाइड:

कारण: -  टाइफाइड बैक्टीरिया सालमनेला टाइफी नामक जीवाणु से होता है जो फैकल-ओरल रूप से फैलता है, जिसका संबंध अधिकतर दूषित पानी और खाद्य सामग्री से होता है।

लक्षण:

  • बुखार, जो अक्सर उच्च तापमान के साथ होता है।

  • अच्छानक उठने वाला बुखार, हेडेक, और मुंह में बदबू रहना।

  • अच्छानक उठने वाली ठंडक, त्वचा की पीलापन, और आंखों के सफेदापन के साथ रक्त की अल्त पल्ती।

  • पेट में दर्द, उल्टी, और दस्त।

रोकथाम और उपाय:

  • स्वच्छता: स्वच्छ पानी, स्वच्छ खाद्य, और सफाई का ध्यान रखें।

  • हैजीन का पालन: शौचालय और खाने के स्थानों की सही से सफाई करें और हैजीन का पूरा पालन करें।

  • टीकाकरण: उपयुक्त टाइफाइड वैक्सीन से बचाव किया जा सकता है।

  • अच्छा खानपान: अच्छे से पके हुए भोजन का सेवन करें और खाद्य सामग्री की स्वच्छता का ध्यान रखें।

टाइफाइड का ठीक से उपचार किया जा सकता है, लेकिन समय रहते न इलाज करने पर यह गंभीर समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।

5 - स्टेम कोशिकाओ पर टिप्पणी लियिए  

Ans - "स्टेम कोशिकाएं" या "स्टेम सेल्स" हमारे शरीर के एक विशेष प्रकार के कोशिकाओं को सूचित करती हैं जो अद्वितीय होती हैं क्योंकि इनमें विशेष गुण होते हैं जो उन्हें किसी भी अन्य कोशिका की शक्ति देते हैं। ये कोशिकाएं शरीर के विभिन्न हिस्सों में पाई जा सकती हैं और विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं का उत्पाद कर सकती हैं।

टिप्पणी:

  • शौचालय कोशिकाएं: ये कोशिकाएं मल तंत्र में पाई जाती हैं और मल में पाये जाने वाले उत्तेजकों की गुणवत्ता में मदद करती हैं।

  • हृदय कोशिकाएं: इनमें उत्तेजना का संचार करने की क्षमता होती है और ये हृदय की सजीवता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

  • मानव अणु कोशिकाएं: स्टेम सेल्स मानव अणु कोशिकाओं में पाई जाती हैं जो शरीर के विभिन्न हिस्सों की पुनर्निर्माण में सहायक हो सकती हैं, जिससे चोट, बीमारी या अन्य समस्याएं ठीक हो सकती हैं।

स्टेम कोशिकाएं मेडिसिन, रिसर्च, और चिकित्सा में नए उपायों की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। इन्हें विस्तार से अध्ययन करने से नई चिकित्सा संभावनाएं और समाधान खोजे जा सकते हैं।


CHAPTER - 7

                       मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव  (Microbes in human welfare)

1 - जैव उर्वरक क्या है? कृषि में इनका क्या महत्व है।

 Ans -  जैव उर्वरक:  जैव उर्वरक वे उर्वरक हैं जो पूर्णतः प्राकृतिक और जैविक पदार्थों पर आधारित होते हैं, जो पौधों को पोषण प्रदान करने में मदद करते हैं।

कृषि में महत्व:

जैव उर्वरक कृषि में महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें पौधों के लिए आवश्यक तत्व होते हैं जो सृजनशीलता, पोषण, और उनकी स्वस्थ विकास में मदद करते हैं। ये प्रदूषण को कम करने में भी सहायक हो सकते हैं और जैव उपयोगिता बढ़ा सकते हैं।

2 -बायोगैस क्या है ? ग्रामीण क्षेत में बायोगैस के दो उपयोग बताइए?

Ans - बायोगैस: बायोगैस एक उर्जा स्रोत है जो जैविक सामग्रियों से उत्पन्न होता है, जैसे कि गोबर और जल सामग्रियाँ।

ग्रामीण क्षेत में उपयोग:

  • गैस शृंगार: बायोगैस को ग्रामीण क्षेत्रों में गैस शृंगार के रूप में उपयोग किया जा सकता है जो गृहों और उद्योगों को सुरक्षित और सस्ती से उर्जा प्रदान करता है।

  • खेती में उर्जा: बायोगैस को ग्रामीण क्षेत्रों में खेती में उर्जा स्रोत के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे किसानों को बेहतर और सस्ती से उर्जा मिलती है।


CHAPTER - 8

                      जैव प्रोद्यौगिकी : सिद्धान्त एवं प्रक्रम ( Biotechnology: Principles and Processes )

1 - DNA लाइगेज पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।

Ans - DNA लाइगेज:  DNA लाइगेज एक विशिष्ट प्रकार का एन्जाइम होता है, जो दो DNA खण्डों को आपस में या DNA अणु के टूट-फूट वाले स्थल को जोड़ने का कार्य करता है।

2 - PCR पर टिप्पणी किजिए।

Ans - डीएनए खण्ड अथवा जीन की अनेक प्रतियाँ उत्पन्न करने की प्रक्रिया जीन आवर्धन (gene amplication) कहलाती हैं। आजकल उच्च तकनीक पर आधारित पॉलिमरेज चेन रिएक्शन (polymerase chain reaction) द्वारा डीएनए खण्ड अथवा जीन की हजारों प्रतियाँ कुछ ही घंटों में उत्पन्न की जा सकती हैं। इसके द्वारा विशिष्ट डीएनए अनुक्रमों को पात्रे (in vitro) संश्लेषित किया जाता है।

पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया (Polymerase chain reaction)
पॉलिमरेज अभिक्रिया श्रृंखला द्वारा जीन की एकमात्र प्रति से इसकी असंख्य (अरबों) प्रतियों का उत्पादन कुछ ही समय में प्राप्त होता है। जिस मशीन द्वारा जीन का आवर्धन (amplification) किया जाता है उसे पीसीआर मशीन (PCr~ machine) कहते हैं। इस तकनीक का विकास वैज्ञानिक केरी मुलिस (Kary Mullis) ने 1985 में किया था।

3 -   प्लाज्मिड वेक्टर पर टिप्पणी किजिए।

 Ans - प्लाज्मिड वेक्टर (Plasmid Vector)- प्लाज्मिड जमीवाणु कोशिका में प्रकृतिक रूप से पाया जाने वाला दोहरे स्ट्रेण्ड वाला D.N.A अनु है जो केन्द्रकाभ (nucleoid) के गुणसूत्रीय D.N.A से बहार स्थित होता है। इसमें द्विगुणन प्ररम्भ स्थल (site for origin of replication) होता है तथा इनका विभाजन कोशिका विभाजन से अलग, स्वतंत्र रूप से होता है। प्लाज्मिड जीवाणु कोशिका में एक से लेकर सैकड़ो तक हो सकते है। डी०एन०ए० अनु जिसमे पोषक कोशिका में गुणन करनेव की क्षमते होती है तथा जिसमे क्लोन किए जाने वाले विजातीय D.N.A खण्ड को जोड़ा जा सकता है , (vector) वाहक कहलाता है। एक अच्छे वाहक में प्रतिकृतिकरण की उत्तपत्ति स्थल (ori), व्रणयोग चिहक (एन्टीबायोटिक प्रतिरोधी जीव) तथा क्लोनिंग स्थल उपस्थित होते है।

प्रकृतिक रूप से पाए जाने वाले प्लाज्मिड में सफल वेक्टर सभी गन नहीं होते। अतः अनुवांशिक इंजीनियरिंग द्वारा बदल लिया जाता है। अधिकतर प्लाज्मिडस में प्रतिजैविकरोधी जीन (antibiotic resistent gene) होते है।

सर्वाधिक प्रयोग में लाए जाने वाले प्लाज्मिड वेक्टर pBR 322 , पबर 327 तथा pUC है। उच्च पौधी में 

T1 प्लाज्मिड तथा R प्लाज्मिड का प्रयोग अधिक होता है। प्लाज्मिड का प्रयोग अनुवांशिक इंजीनियरिंग में किया जाता है। इसका उपयोग मानव इन्सुलिन, हेपेटाइटिस - B वैक्सीन आदिन के निर्माण में भी किया जाता है।

pBR 322 संवाहक (pBR 322 Vector) इस कृत्रिम संवाहक को ईरस्केरीकिया कोलोई के प्लाज्मिड से बनाया गया है। इनमे p का अर्थ है प्लाज्मिड तथा BR उन वैज्ञानिकों के नाम के प्रथमाक्षर है। pBR को बोलिवर व रोड्रीगेज (bolivar and rodrigej) ने तैयार किया था। इस प्लाज्मिड में 40 से भी अधिक पहचान ( अभिज्ञान ) स्थल है। इस संवाहक में दो प्रमुख प्रतिजैविको टेट्रासाइक्लिन तथा एमईसीलिन के लिए पररोधक क्षमता पायी जाती है। यह सर्वाधिक उपयोग किए जाने वाला प्लाज्मिड संवाहक है।



CHAPTER - 9

                    जैव प्रोद्यौगिकी एवं उसके उपयोग 

(Bio-technology and its uses )

1  - जैव प्रोद्यौगिकी का कृषि क्षेल में उपयोग ।

Ans - जैव प्रोद्यौगिकी का कृषि क्षेत्र में उपयोग:  जैव प्रोद्यौगिकी कृषि में सुधार और उत्पादन में नवीनता लाने के लिए जीवन्त संसाधनों का उपयोग करती है।

उपयोग:

  • बायो-फर्टिलाइजर्स: जैव प्रोद्यौगिकी के उत्पादों का उपयोग जैविक खेती में उर्वरक के रूप में किया जा सकता है, जो मिट्टी को सुधारता है और पौधों को पौष्टिक तत्व प्रदान करता है।

  • बायो-पेस्टिसाइड्स: जैव प्रोद्यौगिक पेस्टिसाइड्स का उपयोग कीटनाशकों की जगह किया जा सकता है, जो प्रदुषण को कम करता है और फसलों को सुरक्षित बनाए रखता है।

  • बायो-स्टिमुलेंट्स: जैव प्रोद्यौगिक बायो-स्टिमुलेंट्स किसानों को पौधों की सुरक्षा और विकास में मदद करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

जैव प्रोद्यौगिकी का उपयोग कृषि में एक सस्ता, प्रदूषणमुक्त, और सस्ता विकल्प प्रदान करता है जो सतत और स्वास्थ्यपूर्ण उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करता है।

2 - Bt कपास पर टिप्पणी लिखिए ।

Ans - Bt कपास एक जीनेटिकली मॉडीफाइड कपास है जिसमें बैक्टीरिया बैसिलस थ्यूरिंजिएंसिस (Bt) का जीन संज्ञाना रखा जाता है। इस तकनीक का उपयोग कीटनाशक प्रबंधन में किया जाता है।

टिप्पणी:

  • कीट प्रबंधन में सुरक्षित: Bt कपास में जीनेटिक मॉडिफिकेशन के कारण, यह पौधों को कीटों के खिलाफ सुरक्षित बनाता है, जिससे कीट प्रबंधन में बेहतर परिणाम मिलते हैं।

  • कृषि उत्पादकता में सुधार: Bt कपास की बुआई से उत्पन्न होने वाली पौधों की सुरक्षा में सुधार होने के कारण, किसानों को ज्यादा उत्पादकता और कम खर्च मिलता है।

  • पर्यावरण को कम हानि: Bt कपास का उपयोग विषाणु मिट्टी, प्राकृतिक शत्रुओं के प्रति सही दृष्टिकोण से किया जाता है, जिससे पर्यावरण को कम हानि होती है।

Bt कपास एक प्रौद्योगिकी है जो कृषि क्षेत्र में सुरक्षित और उत्पादक उपायोग के लिए साबित हो रही है।

3 - बायोपाइरेसी पर उदाहरण सहित टिप्पणी लिखिए।


Ans - बायोपाइरेसी (Biopiracy) :-

जब किसी राष्ट्र या उससे संबंधित लोगों से बिना अनुमति लिए तथा क्षतिपूरक भुगतान के जैव संसाधनों का उपयोग किया जाता है तब वह बायोपाइरेसी कहलाता है।

जैसे :- अमेरिकन कंपनी एली लिली ने लाइसेंस प्राप्त कर मेडागास्कर देश के निवासी से सदाबहार (Vinica rosea) नामक पौधे को प्राप्त किया, परंतु उस देश को सदाबहार पौधे के बदले में कोई राशि प्राप्त नहीं हुई। जो बायोपाइरेसी का उदाहरण है।

sadabahar leaves mainचित्र :- सदाबहार पौधे।


4 - जैव प्रोद्यौगिकी का मानव स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनुप्रयोग।

Ans - लक्षणों के आधार पर रोग निदान एवं रोगों के उपचार में जैव प्रौद्योगिकी का विशेष योगदान प्राप्त हो रहा है जिससे सामाजिक स्वास्थ्य को बनाए रख सकते हैं। जैसे (1) टीका उत्पादन (production of vaccines)

(2) स्टेरॉयड हॉमोन उत्पादन (production of steroid hormones)

(3) गर्भावस्था में रोग की जानकारी (diagnosis of diseasies during pregnancy)

(4) जीन अदला-बदली द्वारा चिकित्सा (gene therapy)

(5) फिनाइलकीटोन्यूरिया (Phenylketonuria), बीटा थैलेसीमिया β Thalcemia), सिकल सेल एनीमिया (sickle celled anaemia), एड्स (AIDS) आदि रोगों को प्रारम्भिक अवस्था में पहचानने में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।


5 - पुर्वयोगज DNA प्रोद्यौगिकी क्या है? आनुवांशिक अभियांतिकी के मानव हित में चार अनुप्रयोग


Ans - आनुवांशिक या जीनी अभियांत्रिकी (Genetic Engineering) - किसी वांछित विजातीय DNA खंड को एक वाहक DNA खंड से जोड़कर बनाया पुनर्योगज DNA (recombinant DNA) कहलाता है। वांछित DNA प्राप्त करने हेतु रेस्ट्रिक्शन एंजाइम का तथा इसे वाहक DNA से जोड़ने हेतु DNA लाइगेज का प्रयोग किया जाता है। इन दोनों एंजाइम ने ही जीनों के उलटफेर (genetic manipulations) को सम्भव बनाया है।

इस कारण इसे पुनः संयोजी डीएनए प्रौद्योगिकी (Recombinantt DNA technology) भी कहते हैं। इस तकनीक द्वारा वंचित DNA खंड की क्लोनिंग की जाती है अर्थात उसकी अनेक प्रतियाँ प्राप्त की जा सकती है। इस पुनर्योगज DNA को किसी जीवाणु /कवक/या अन्य कोशिका में स्थानांतरित कर जीन विशेष का उत्पाद (रिकॉम्बिनेंट प्रोटीन) प्राप्त की जा सकती है अथवा इससे किसी जीव के फीनोटाइप में परिवर्तन किया जा सकता है। आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग अनुसंधान कार्य के लिए तथा अनेक व्यावसायिक उत्पादनों के लिए भी जा रहा है। आनुवंशिक इंजीनियरिंग की सहायता से मानव जींस की खोज, रोगों के कारणों की खोज की गई है। इससे रोगों के उपचार में भी सहायता मिल रही है।


6 - मानव इन्सुलिन पर टिप्पणी ।

Ans - इन्सुलिन संश्लेषण (सिंथेसिस ऑफ इन्सुलिन) - मधुमेह को नियंत्रित करने के लिए उपयोगी इन्सुलिन के जीन को मनुष्य अथवा जंतुओं के अग्नाशय की कोशिकाओं से पृथक्क करके प्लाज्मिड वेक्टर (plasmis vector) की सहायता से जीवाणु में प्रवेश कराकर इस जीन की अनेक प्रतियाँ प्राप्त की जाती है। यह प्रक्रिया जीन क्लोनिंग (Gene cloning) कहलाती है। जीन की इन प्रतियों की सहायता से इन्सुलिन का औद्योगिकी निर्माण किया जाता है।



CHAPTER - 10 

                        जैव विविधता एवं संरक्षण ( Biodiversity and Conservation)


1 - IUCN तथा WWF का पूरा नाम

Ans - IUCN – अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण संघ (International Union of Conservation of Nature and Natural Resources) 

WWF – World Wide Fund.


2 - संकटग्रस्त वन्य प्राणियो से आप क्या समझते है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।

Ans - संकटग्रस्त जातियाँ-वे जातियाँ हैं, जिनके संरक्षण के उपाय नहीं किये गये तो वे निकट भविष्य में समाप्त हो जायेंगी। जैसे-गैण्डा,गोडावन आदि।

वन्य जीव संरक्षण के लिए स्थापित सुरक्षित क्षेत्र

(1) राष्ट्रीय उद्यान-वे प्राकृतिक क्षेत्र जहाँ पर पर्यावरण के साथ-साथ वन्य जीवों एवं प्राकृतिक अवशेषों का संरक्षण किया जाता है, राष्ट्रीय उद्यान कहलाते हैं । जैसे-रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान, सवाईमाधोपुर (राजस्थान)।

(2) अभयारण्य-वे संरक्षित क्षेत्र, जिनमें वन्य जीवों के शिकार एवं आखेट पर पूर्ण प्रतिबन्ध होता है तथा कुछ प्रमुख वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान किया जाता है, अभयारण्य कहलाते हैं। जैसे-सरिस्का, अलवर (राजस्थान) जिसके प्रमुख वन्य जीव हिरण, गोडावन है।



3 - तप्त स्थल (hot Spot) पर टिप्पणी कीजिए।

Ans - तप्त स्थल (Hot Spot)-विश्व के कुछ उच्च प्रजाति समृद्धता क्षेत्र को संरक्षणविदों ने तप्त स्थल (हॉट स्पॉट) का नाम दिया है। इन हॉट स्पॉटम प्रजातियों की संख्या तो अधिक है ही साथ ही वहाँ की प्रजातियों में उच्च स्थानिकता या एण्डेमिज्म (endemism) पायी जाती है।

"ऐसी प्रजातियाँ जो किसी भौगोलिक क्षेत्र विशेष तक सीमित हैं तथा विश्व में और कहीं नहीं पायी जाती एण्डेमिक प्रजातियाँ कहलाती हैं।"

अत: तप्त स्थल (हॉट स्पॉट) विश्व में जैव विविधता संरक्षण हेतु चुने गए ऐसे क्षेत्र है जो (i) उच्च प्रजाति समृद्धता प्रदर्शित करते हैं।

(ii) मानवीय गतिविधियों के कारण जिनमें तेजी से पर्यावासों की क्षति हुई है, अर्थात् संकट का स्तर अधिक है।

(iii) यहाँ की प्रजातियों की एक बड़ी संख्या स्थानिकता (endemism) प्रदर्शित करती है। विश्व के सभी हॉट स्पॉट मिलकर कुल वैश्विक स्थलीय क्षेत्र के 2 प्रतिशत से भी कम भाग में ही सीमित हैं लेकिन इनमें विश्व की ज्ञात उच्च पादप प्रजातियों में से 44% के साथ-साथ 35% स्थलीय पृष्ठधारी (terrestrial vertebrate) प्रजातियाँ पायी जाती हैं। प्रारम्भ में कुल 25 हॉट स्पॉट की पहचान की गयी थी लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ाकर 35 कर दी गई है। भारत में ऐसे 4 हॉट स्पॉट हैं।


4 - जैव विविधता की परिभाषा लिथिए ।

Ans - जैव विविधता की परिभाषा


जैव विविधता पृथ्वी पर जीवन रूपों की व्यापक विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करती है, जिसमें प्रजातियों के भीतर, प्रजातियों के बीच और पारिस्थितिक तंत्र के भीतर विविधता शामिल है। यह जैविक प्रणालियों की समृद्धि और जटिलता को दर्शाता है, जिसमें व्यक्तिगत जीवों में आनुवंशिक विविधता से लेकर प्रजातियों की विविधता और उनके द्वारा बनाए गए विभिन्न आवास और पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। यह विविधता हमारे ग्रह के स्वास्थ्य के लिए मौलिक है और मानव कल्याण के लिए महत्वपूर्ण संसाधन और लाभ प्रदान करती है।


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